Loading
Friends of Yamuna Foundation
दिल्ली की हड्डियां गला देने वाली सर्दियों में अलसुबह एक शख्स रोज साढ़े चार बजे के आसपास यमुना नदी पर बने आईटीओ पुल पहुंचता है। वह लक्ष्मी नगर से आता है। अपनी साइकिल ठीक वहां पर खड़ी कर देता है, जहां पर जालियां लगी हैं और नीचे नाले में तब्दील हो गई यमुना जैसे-तैसे बह रही होती है। वह जल्दी-जल्दी उन जालियों पर लटकी हुई प्लास्टिक की थैलियों को उतारकर एक लिफाफे में रखने लगता है। इन थैलियों में कथित भक्तगण यमुना में कचरा डालने आते हैं और थैलियों को छोड़कर निकल लेते हैं। इनके धतकरम को साफ करते हैं अशोक उपाध्याय। वह यमुना को अपनी मां सरीखा ही मानते हैं। उम्र होगी साठ साल।
अशोक उपाध्याय थैलियों को इकट्ठा करके अपनी साइकिल के पीछे एक पैकेट में बांधकर निकलते हैं जनपथ। वहां एनडीएमसी के कूड़ाघर में थैलियों को डाल देते हैं। तब तक साढ़े पांच बज रहे होते हैं। अब पेशे से अखबारों के हॉकर अशोक उपाध्याय जनपथ के अपने सेंटर में अखबारों-पत्रिकाओं को लेने में बिजी हो जाते हैं।
फिर उनके बांटने का काम चालू होता है। यह काम सुबह आठ बजे से कुछ पहले समाप्त कर लेते हैं। अब उन्हें उन आम, नीम, जामुन के पौधों को पानी देना है,जो उन्होंने अपने साथियों, ग्राहकों और परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर यमुना तीरे लगाए हैं।
अशोक के साथ इस अभियान में अब कम से कम पचास लोग और भी जुड़ चुके हैं। ये महीने के हर तीसरे और चौथे रविवार को यमुना की सफाई में जुट जाते हैं। इनका सुबह 8 बजे से लेकर 11 बजे तक डटकर काम चलता है। इस दौरान घाटों पर प्लास्टिक के पैकेट, बोतलें, मूर्तियां और अन्य सामान एकत्र कर लिया जाता है। फिर उसे किसी कूड़ाघर में डाला जाता है। अशोक को याद है जब वे अपने पिता शिव दुलारे उपाध्याय और मां के साथ 70 के दशक के अंत में यमुना के घाट पर कुछ वक्त बिताने आने लगे थे। उनके पिता कामकाज की तलाश में 1945 में अयोध्या से दिल्ली आए थे। वे कहते हैं कि उस दौरान यहां यमुना का जल शीशे की तरह चमकता था। गंदगी का नामो-निशान भी नहीं था। आज की यमुना की दुर्दशा देखकर रोना आ जाता है।
यमुना बाबा के नाम से मशहूर अशोक उपाध्याय एक न्यूज़ पेपर हॉकर हैं । खुद एक संघर्षपूर्ण जीवन जीते हुए भी अशोक उपाध्याय पिछले 20 साल से दिल्ली की यमुना नदी की सफाई के काम में जुटे हैं । अशोक उपाध्याय ने अपनी यमुना मां और उससे आस पास की पूरी प्रकृति, पेड़-पौधों और पक्षियों की सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है । क्या है उनके इस जुनून के पीछे की वजह, आइये जानते हैं खुद अशोक उपाध्याय से ।